पीठाधीश्वर आचार्य डॉ. हरिनारायण जी शास्त्री महाराज का देवलोकगमन

 

पीठाधीश्वर आचार्य डॉ. हरिनारायण जी शास्त्री महाराज का देवलोकगमन :-

अंतरराष्ट्रीय वरिष्ठ रामस्नेही संप्रदाय की प्रधान पीठ रामधाम रेण के 8 वें पीठाधीश्वर आचार्य डॉ. हरिनारायण शास्त्री महाराज का 8 जून, 2021 को देवलोकगमन हो गया।

  

                                                                    

महाराज के उत्तराधिकारी संत सज्जनराम रामस्नेही ने उन्हें मुखाग्नि दी। उन्हें देशभर में लोगों को गुरु-शिष्य परंपरा से जोड़ने के लिए भी जाना जाता है।

हरिनारायण जी शास्त्री का जीवन परिचय :-

रेण रामस्नेही पीठाचार्य हरिनारायण जी शास्त्री का जन्म 21 अगस्त, 1947 को शीलगाँव, नागौर में हुआ था। 15 वर्ष की आयु में इन्होंने घर छोड़ दिया और 47 वर्ष तक इस गद्दी से राम नाम का प्रचार किया। गुरु-शिष्य परम्परा की इन्होंने जमकर व्याख्या की। सरल स्वाभाव, दिखावे से कोसों दूर केवल राम नाम में ही रमण करने वाले हरिनारायण जी शास्त्री पिछले 3 वर्ष बीमार चल रहे थे। जिस कमरे में वे रहते थे, उसके काँच की खिड़की से ही श्रद्धालु उनका दर्शन कर रहे थे।

                                                           

महाराज हरिनारयण शास्त्री 8 जनवरी, 1973 को इस गादी पर विराजित हुए थे। उनसे जो भी मिलता, वे एक ही बात कहते- राम जी राम। केवल राम का नाम लो। इसके अलावा गौसेवा और बच्चों की पढ़ाई पर भी उन्होंने जीवनभर जोर दिया था।

प्रमुख प्रकाशित पुस्तके :-

धर्म के अलावा हरिनारायण जी शास्त्री जी की साहित्य में भी गहरी रुचि रही। उन्होंने कई पुस्तके प्रकाशित की जिसमें प्रमुख रूप से जीवनधारा, सागर के बिखरे मोती, सप्तऋषि आचार्य पुस्तक, रेण पुस्तक प्रकाशित की।

रेण धाम का इतिहास :-

पीठों में रेण सबसे बड़ी पीठ। इस रामस्नेही सम्प्रदाय की देशभर में 4 प्रमुख पीठ है जिनमें रेण प्रमुख है।

इस सम्प्राय से देशभर से लाखों अनुयायी जुड़े हुए है।

दरियाव महाराज के मोक्ष के पश्चात अब तक 7 पीठाचार्य आसन को सुशोभित कर ब्रह्मलीन हो चुके हैं।

रामधाम में मिलता है गुरु शक्ति का उदाहरण- आज भी तैरती है पत्थर की ईंट :-
रामस्नेही संप्रदाय के संस्थापक आदि आचार्य की भक्ति और शक्ति का प्रभाव यहां आज भी देखा जा सकता है। उनकी तपस्याकृत पत्थर की ईंट आज भी धाम के तट पर ही स्थित लाखासागर सरोवर में कागज की माफिक तैरती है। गुरु शक्ति और श्रद्धालुओं की भक्ति का ये नजारा वर्ष में तीन बार धाम में देखने को मिलता है।

संपादक 
महावीर ताड़ा



                                 

 

 

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