राजस्थान का चौथा बाघ अभयारण्य (रामगढ़ विषधारी वन्यजीव अभयारण्य)
राजस्थान का चौथा बाघ अभयारण्य (रामगढ़ विषधारी वन्यजीव अभयारण्य)
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण(नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी- NTCA) की तकनीकी समिति ने बूंदी के रामगढ़ विषधारी वन्यजीव अभयारण्य को राजस्थान प्रदेश के चौथे बाघ अभयारण्य बनाने की मंज़ूरी दी है।
रामगढ़ विषधारी वन्यजीव अभयारण्य
राजस्थान का चौथा टाइगर रिज़र्व/बाघ अभयारण्य बन गया।
इसके लिए 1050 स्क्वायर किमी का एरिया प्रस्तावित
किया गया है।
यह भारत का 52वाँ टाइगर
रिज़र्व होगा।
बाघों की आबादी के मामले में राज्यों का
स्थान:-
देश में बाघों की आबादी के मामले में
पहले स्थान पर टाइगर स्टेट के नाम से चर्चित मध्यप्रदेश (526), दूसरे
स्थान पर कर्नाटक (524), उत्तराखंड (442) तीसरे और महाराष्ट्र (312) तथा तमिलनाडु
(264) क्रमशः चौथे और पाँचवें स्थान पर रहे।
राजस्थान से ऊपर उत्तर प्रदेश है, वहां
173 बाघ वर्तमान में हैं।
देश में बाघों की आबादी के मामले में राजस्थान
नवां प्रदेश बन गया है। जहां 102 बाघ वर्तमान में हैं।
बाघों की आबादी के मामले में बाघ अभयारण्यों का स्थान:-
केंद्र सरकार द्वारा जारी रिपोर्ट के
अनुसार, उत्तराखंड के जिम कॉर्बेट बाघ अभ्यारण्य (231) में देश में सबसे अधिक बाघों
की आबादी पाई गई।
बाघों की संख्या के मामले में दूसरे
स्थान पर कर्नाटक का नागरहोल टाइगर रिज़र्व (127), तीसरे स्थान पर बांदीपुर टाइगर
रिज़र्व (126) और बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व (104) तथा काजीरंगा टाइगर रिज़र्व (104)।
प्रोजेक्ट टाइगर:-
प्रोज़ेक्ट टाइगर की शुरुआत केंद्रीय
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा वर्ष 1973 में की गई थी।
जोधपुर निवासी डॉ. कैलाश साँखला (टाईगर मैन ऑफ इण्डिया) को इस कार्यक्रम का पहला निदेशक नियुक्त किया गया था।
वर्ष 1973 में प्रोज़ेक्ट टाइगर की शुरुआत
की समय देश में मात्र 9 टाइगर रिज़र्व थे, वर्तमान में देश में कुल टाइगर रिज़र्वों
(Tiger Reserve) की संख्या बढ़कर 51 हो गई है।
यह परियोजना टाइगर रेंज वाले 18 राज्यों
में विस्तारित है, जो हमारे देश के भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 2.21% है।
पहली बाघ परियोजना जिम कार्बेट (उत्तराखण्ड)
में बनाई गई।
राजस्थान में बाघ परियोजना:-
राजस्थान में बाघ परियोजना का प्रारम्भ वर्ष 1974 में किया गया।
राजस्थान की पहली बाघ परियोजना रणथम्भौर टाईगर प्रोजेक्ट है जिसे देश में बाघों का घर कहते हैं जो सवाई माधोपुर में स्थित है।
राजस्थान की दूसरी बाघ परियोजना सरिस्का
(अलवर) में हैं जिसे वर्ष 1979 में ‘टाईगर प्रोजेक्ट’ का दर्जा दिया गया।
राजस्थान की तीसरी बाघ परियोजना मुकुन्दरा
हिल्स (कोटा-झालावाड़) में है जिसे 10 अप्रैल, 2013 को टाईगर प्रोजेक्ट का दर्जा दिया
गया।
राजस्थान की चौथी बाघ परियोजना रामगढ़ विषधारी वन्यजीव अभयारण्य बूंदी में है जिसे वर्ष 2021 को हाल ही में टाइगर प्रोजेक्ट का दर्जा दिया गया।
राष्ट्रीय उद्यान:-
वन्य जीव संरक्षण अधिनियम वर्ष 1972 के तहत
किसी विशिष्ट प्रजाति के लिए अधिसूचित क्षेत्र जिसका संचालन केन्द्र सरकार करती है।
वह राष्ट्रीय उद्यान की श्रेणी में आते हैं।
1. रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान:-
इसकी स्थापना वर्ष 1955 में वन्य जीव अभयारण्य
के रूप में की गई।
1 नवम्बर, 1980 को रणथम्भौर को राष्ट्रीय
उद्यान का दर्जा दिया गया।
यह राजस्थान का पहला राष्ट्रीय उद्यान है।
क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा राष्ट्रीय
उद्यान है।
वर्ष 1998 से 2004 के मध्य 6 वर्ष के लिए
विश्व बैंक के सहयोग से इको इण्डिया डवलपमेंट प्रोजेक्ट चलाया गया।
यह राष्ट्रीय उद्यान बाघ के लिए प्रसिद्ध
है।
इस राष्ट्रीय उद्यान में धौंक एवं ढाक के
वृक्ष पाए जाते हैं।
रणथम्भौर दुर्ग, जोगी महल, त्रिनेत्र गणेश
मंदिर, पदम तालाब, मलिक तालाब, गिलोई सागर, राज बाग तालाब, लाभपुर/लाहपुर झील ये सभी
रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान में स्थित हैं।
2. केवलादेव घना पक्षी विहार राष्ट्रीय उद्यान:-
यह भरतपुर में स्थित है जिसकी स्थापना वर्ष
1956 में की गई थी और 27 अगस्त, 1981 को इसे ‘राष्ट्रीय उद्यान’ का दर्जा दिया गया।
यह राष्ट्रीय उद्यान राजस्थान में क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे छोटा अभयारण्य है।
इस राष्ट्रीय उद्यान का नामकरण केवलादेव शिव मंदिर के नाम पर किया गया।
इस राष्ट्रीय उद्यान को पक्षियों का स्वर्ग,
पक्षियों की आश्रय स्थली कहा जाता है और यह साइबेरियन सारस के लिए प्रसिद्ध है।
यहाँ कदम्ब के वृक्ष पाए जाते हैं और यहाँ
पाइथन (अजगर) प्वाइंट स्थित है।
3. मुकुन्दरा हिल्स राष्ट्रीय उद्यान:-
यह राष्ट्रीय उद्यान कोटा-झालावाड़ में फैला
हुआ है।
इसकी स्थापना वर्ष 1955 में की गई और 9 जनवरी,
2012 में राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया।
यह राष्ट्रीय उद्यान गागरोनी तोते (हीरामन
तोता) के लिए प्रसिद्ध है।
इस राष्ट्रीय उद्यान में तीन प्रमुख पर्यटन
स्थल अबली मीणी का महल, रावण महल, भीमचोरी मंदिर स्थित है।
यह राष्ट्रीय उद्यान राष्ट्रीय राजमार्ग
52 (पुराना क्रमांक-12) पर स्थित है।
4. रामगढ़ विषधारी वन्यजीव अभयारण्य:-
यह अभयारण्य राजस्थान के बूंदी ज़िले में
रामगढ़ गाँव के निकट बूंदी शहर से 45 किमी. की दूरी पर बूंदी-नैनवा रोड पर स्थित
है।
इसे वर्ष 1982 में वन्यजीव अभयारण्य के
रूप में अधिसूचित किया गया था और यह 252.79 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ
है।
1,017 वर्ग किमी. के कुल क्षेत्र को आरक्षित क्षेत्र के रूप में चिह्नित गया है जिसमें भीलवाड़ा के दो वन ब्लॉक- बूंदी का क्षेत्रीय वन ब्लॉक और इंदरगढ़ शामिल हैं, जो रणथंभौर टाइगर रिज़र्व (RTR) के बफर ज़ोन के अंतर्गत आता है।
इसकी वनस्पतियों में आम और बेर के कुछ
वृक्षों के साथ-साथ ढोक, खैर, सालार, खिरनी के वृक्ष शामिल हैं।
यहाँ पाए जाने वाले प्रमुख जंतु वर्ग में
तेंदुआ, सांभर, जंगली सूअर, चिंकारा, स्लॉथ बियर, भारतीय भेड़िया, लकड़बग्घा,
सियार, लोमड़ी, हिरण और मगरमच्छ जैसे पक्षी और जानवर शामिल हैं।
यहाँ बाघ परियोजना के अतिरिक्त राजस्थान में
सर्वाधिक बाघ विचरण करते हैं।
कुराल नदी (चम्बल की सहायक नदी) की सहायक
नदी मेज नदी का उद्गम स्थल इसी अभयारण्य से हैं।
वैश्विक बाघ दिवस
प्रत्येक वर्ष 29 जुलाई को वैश्विक
बाघ दिवस (Global Tiger Day) मनाया जाता है
प्रथम विश्व बाघ दिवस का आयोजन वर्ष 2010
में ‘सेंट पीटर्सबर्ग बाघ शिखर सम्मेलन’ (St. Petersburg Tiger Summit) के
दौरान किया गया था।
सेंट
पीटर्सबर्ग घोषणा (St. Petersburg Declaration) :
वर्ष 2010 में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग
शहर में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय बाघ संरक्षण मंच की एक बैठक विश्व के 13 टाइगर रेंज
देशों (Tiger Range Countries-TRCs) के राष्ट्राध्यक्षों ने हिस्सा लिया।
इस बैठक में शामिल सभी देशों ने सेंट
पीटर्सबर्ग घोषणा के तहत जारी ‘ग्लोबल टाइगर रिकवरी प्रोग्राम’ को लागू करने पर
सहमति व्यक्त की।
इस कार्यक्रम के तहत 13TRC देशों ने वर्ष 2022 तक वैश्विक स्तर पर बाघों की संख्या को दोगुना करने का लक्ष्य रखा था।
भारत, बांग्लादेश, भूटान, म्यांमार,
नेपाल, रूस, कंबोडिया, चीन, इंडोनेशिया,मलेशिया, लाओस, थाईलैंड और वियतनाम सहित
कुल 13 देश 'टाइगर रेंज कंट्रीज़' (TRC) में शामिल है।
2,967 बाघों की संख्या के साथ भारत
ने चार वर्ष पूर्व ही ‘सेंट पीटर्सबर्ग घोषणा' के लक्ष्य को प्राप्त कर लिया
है।
वर्ष 2006 में भारत में बाघों की संख्या
1,400 के आसपास थी।
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण
यह पर्यावरण और वन मंत्रालय के तहत एक
वैधानिक निकाय है, जो
इसकी
स्थापना पर्यावरण और वन मंत्री के अध्यक्षता में की गई है।
इस प्राधिकरण में आठ विशेषज्ञ या पेशेवर होते हैं, जिनके पास वन्यजीव संरक्षण और आदिवासियों सहित अन्य लोगों के कल्याण का अनुभव होता है।
इन आठ में से तीन संसद सदस्य होते हैं,
जिनमें से दो लोक सभा तथा एक राज्य सभा का सदस्य होता है।
प्रोजेक्ट टाइगर के प्रभारी वनों का
महानिरीक्षक इसमें पदेन सदस्य सचिव के रूप में कार्य करता है।
एनटीसीए भारत में बाघों के संरक्षण के
लिए व्यापक निकाय है।
इसका मुख्य प्रशासनिक कार्य राज्य
सरकारों द्वारा तैयार बाघ संरक्षण योजना को स्वीकार करना है और फिर टिकाऊ
पारिस्थितिकी के विभिन्न पहलुओं का मूल्यांकन करना और बाघों के आरक्षित क्षेत्र के
भीतर किसी भी पारिस्थितिक रूप से अस्थिर भूमि उपयोग जैसे खनन, उद्योग और अन्य
परियोजनाओं को अस्वीकार करना है।
संपादक
महावीर ताड़ा
बहुत ही शानदार तथ्यात्मक अदभुत जानकारी
ReplyDelete👍👍👍👍
ReplyDelete👍👍
ReplyDeleteतथ्यात्मक
ReplyDeletevery interesting and factual facts
ReplyDeleteInteresting. But a map depicting all these sites could have also been there.
ReplyDeleteVery interesting
ReplyDeleteअतिउत्त्तम
ReplyDeleteShort and quality information.. thank you
ReplyDeleteVery useful for competitive exams 👍
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